उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के हक को स्वीकारते हुए सुझाव दिया कि केंद्र फिलहाल इन तीन विवादास्पद कानूनों पर अमल स्थगित कर दे, क्योंकि वह इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से कृषि विशेषज्ञों की एक ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’ समिति गठित करने पर विचार कर रहा है.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि उसका यह भी मानना है कि विरोध प्रदर्शन करने का किसानों के अधिकार को दूसरों के निर्बाध रूप से आने जाने और आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरूद्ध कर देना नहीं हो सकता है.
पीठ ने कहा कि इस संबंध में समिति गठित करने के बारे में विरोध कर रहीं किसान यूनियनों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश पारित किया जाएगा. पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा इन कानूनों के अमल (लागू) को स्थगित रखने से किसानों के साथ बातचीत में मदद मिलेगी.
हालांकि, अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस सुझाव का विरोध किया और कहा कि अगर इन कानूनों का अमल स्थगित रखा गया तो किसान बातचीत के लिए आगे नहीं आएंगे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह केंद्र से इन कानूनों पर अमल रोकने के लिए नहीं कह रही है, बल्कि यह सुझाव दे रही है कि फिलहाल इन पर अमल स्थगित रखा जाए, ताकि किसान सरकार के साथ बातचीत कर सकें.
पीठ ने कहा, ‘हम किसानों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं. हम भी भारतीय हैं, लेकिन जिस तरह से चीजें शक्ल ले रही हैं उसे लेकर हम चिंतित हैं.’ पीठ ने कहा, ‘वे (विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान) भीड़ नहीं हैं.’
न्यायालय ने कहा कि वह विरोध कर रही किसान यूनियनों पर नोटिस की तामील करने के बाद आदेश पारित करेगा और उन्हें शीतकालीन अवकाश के दौरान अवकाशकालीन पीठ के पास जाने की छूट प्रदान करेगा.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि वह किसानों के विरोध प्रदर्शन के अधिकार को मानती है, लेकिन इस अधिकार को निर्बाध रूप से आने जाने और आवश्यक वस्तुएं तथा अन्य चीजें प्राप्त करने के दूसरों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करने वालों से दूसरों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार पुलिस और प्रशासन को दिया गया है.